...न छोडना अकेला |
कुछ रिश्ते हमें जन्म से मिलते हैं और कुछ हम अपनी समझ से बनाते हैं। इन रिश्तों से जहां एक ओर हमें खुशियां और सहयोग मिलती है तो दूसरी ओर दुख और तकलीफें भी मिलती हैं। इसलिए काफी मुश्किल बात है रिश्तों को समझना और निभाना। हम अक्सर अपनी जिंदगी में किसी न किसी रिश्ते से आहत होते हैं। लेकिन रिश्तों से छुटकारा भी पाना न आसान है और न समाधान।
माना किसी रिश्ते से दिल को ठेस पहुंची हो और उससे छुटकारा भी पा लिया तो अगला एक कदम रखते ही नये रिश्ते का बनना तय है और पर कह नहीं सकते की यह नया रिश्ता हमेशा साथ रहेगा या फिर कभी न कभी तो इससे भी तकलीफ मिलेगी।
रिश्ते पुश्तैनी जायदाद की तरह नहीं की अपनी मर्जी से उपयोग किया और न कोई धन है की जब चाहे जैसे चाहें खर्च करते जाएँ। रिश्ते बनाने में जितनी ऊर्जा और मुश्किलें आती है उससे ज्यादा उसे संवारने में व्यय होता है। और जब हम इसका उपयोग फिजूल मे करते है तो पता नही चलता की कब रिश्ता ही खत्म हो जाए।
हमारी जिंदगी के अनमोल रिश्तों की डोर बहुत ही नाजुक होती है, ये बात हम सबलोग जानते है पर अपनी जिंदगी में मस्त इन बातों की परवाह ही नही करते और रिश्ते बिखरते चले जाते हैं। यह एक अमानत की तरह है इसे संभाल कर सहेज कर रखने की जरूरत है। जब हम इन्हें सहेज कर रखना शुरू करेंगे तो सभी रिश्ते अपने आसपास नजर आएंगे। इससे एक नयी सकारात्मक ऊर्जा मिलेगी जो हमेशा असुरक्षा की भावनाओं से दूर रखेंगी और आनंदित वातावरण मे खुशिया भर देगी। आप कभी खुद को अकेला नही पाएंगे। बगैर रिश्तों के जिंदगी जीना इतना आसान भी नहीं प्यार तो होगा ही रिश्ते भी बनेगे ही।